Avoid Plastic and Tharmokol
हम भूलते जा रहे है, पुरानी परंपराओं को, पुराने रीति रिवाजों, इस आधुनिकता ने हमारी सामाजिक सरंचनाओं का काफी नुकसान किया है। एक परंपरा होती थी, भूमि पर खाना खाने की, हमने बारातों में भी ये परंपरा अपनी आंखों से देखी थी, जब दूल्हा व बाराती भूमि आसन लगा कर बड़े आनन्द के साथ खाना खाते थे, ये सब चीजें अब इतिहास सी बनती चली जा रही है। दूसरी बात खाना पत्तलों में सर्विस होता था, कितना सात्विक होता था व प्रकति से जुड़ाव दिखता था इंसान का, अब शहरों में पत्तलों का स्थान ले लिया है थर्मोलोल एवं प्लाटिक ने। सस्ता एवं सर्वसुलभ होने की वजह से इंसान ने इसे अपनाना चाहा, प्लेट्स के साथ-2 गिलास एवं चम्मच भी प्लास्टिक के होते हैं जो कि स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण तीनो के लिये नुकसानदेह/हानिकारक हैं, अब लोग इसे जानने लगे हैं कि थर्मोकोल एवं प्लास्टिक का दुष्प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर होता है, एक प्लास्टिक के कप में गर्मा-गर्म मिलने वाली चाय का स्वाद कैंसर का कारक बनता है, क्योंकि उसमें केमिकल लगा होता है व उसमे गर्म चाय डाले जाने से वह केमिकल हमारे शरीर मे प्रवेश कर जाता है ।
प्लास्टिक एवं थर्मोकोल के दुष्प्रभाव जानने उपरांत लोग पुनः पत्तलों अथवा मेटल/स्टील की ओर जाने लगे हैं। आज भूमि पर बैठकर पत्तल में भोजन करने का अवसर मिला, जिसका आनंद ही कुछ ओर है, एक भूमि पर बैठने से जॉइंट्स के रोग नही होते, दूसरे पत्तल में खाना सात्विक माना जाता है व प्रकृति/पेड़ो से जुड़ाव का अवसर देता है, तीसरा इससे स्वरोजगार के अवसर भी पैदा हो रहे है। जब से मंडी में आया हूँ, ये यहां का ट्रेंड/रिवाज/परंपरा ही कह लीजिये कि कितना भी कोई बड़ा व्यक्तित्व क्यों न हो किसी का, बैठना सभी को भूमि पर ही होता है व भोजन भूमि पर बैठकर ही करना होता है, ये अपने आप मे बड़ी बात है व एक समानता का भाव भी पैदा करती है। आज वीरमण्डल के वोलिएन्टीर्स एवं नगर परिषद के सौजन्य से माँ सिद्धभद्रा मंदिर में स्वच्छता अभियान के वोलिएन्टीर्स, जो कि आई0आई0टी0 कमांध से आये थे, उनके लिए ये आयोजन किया गया था, वास्तव में पुराने दिनों/गावँ की याद आ गयी। वीरमण्डल टीम के समस्त सदस्यों का दिल की गहराई से आभार।
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