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Showing posts from 2017

Sanitation problem & challange

⛺ वैसे काफी कमियां है, हमारे काम में, हमारे सिस्टम में, सुधार की काफी गुन्जाईस लगती है, पर जब दूसरे शहर से तुलना करता हूँ तो स्थिति सन्तोष की हो जाती है, बात करें, प्रतिदिन स्वीपिंग की, गार्बेज कलेक्शन की, कूड़ेदानों से गार्बेज रिमूव के अभ्यास की तो हमें अपने शहर की व्यवस्था से संतोष मिलता है। आज सहारनपुर जाने का मौका मिला, मेरी नजर वहां की सफाई व्यवस्था पर ही रही, तो देखकर दंग रह गया, भीड़भाड़ वालों स्थानों पर ही गार्बेज के अम्बार देखकर व् जामा मस्जिद वाले पवित्र स्थान पर भी इतनी गंदगी देखकर, हैरान हुवा वहां पर पॉलीथिन के खुलकर प्रयोग करने व् हर दुकानदार के द्वारा  निसंकोच भाव से अपने ग्राहक को दिए जाने, हैरान हुवा वहां पर स्थानीय लोगों में जागरूकता के आभाव की कमी से। इस हिसाब से अपने शहर के नागरिक व् नगर परिषद की अपनी टीम जागरूकता, गार्बेज कलेक्शन, ट्रांसपोर्टेशन, के मामले में काफी आगे है, स्वच्छता एवं सफाई में स्थानीय लोगों की सोच काफी मायने रखती है, ये ही इसकी आधारशिला का निर्माण करती है। जब तक लोगों की सोच परिपक्व न होगी, लापरवाही बरतेंगे, इस काम में लगे सरकारी तंत्र भी परव...

Public awareness regd. Sanitation

यदि हम वास्तव में अपने शहर को स्वच्छ व् सुंदर देखने के लिये गंभीर हैं, उत्सुक है, तो इसके लिये हर समय हमें सजग रहना पड़ेगा, इस काम के लिए “जनसहभागिता एवम् जागरूकता” दो तत्व ऐसे हैं, जिनके बिना हम किसी भी कीमत पर लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते, चाहे हम नगर परिषद् के सफाई कर्मियों की संख्या दुगनी ही क्यों न कर दें। ये अपने शहर का सोभाग्य है की दोनों ही तत्व वर्तमान में अपने चरम पर हैं। जागरूकता की यदि बात करें तो मेरा ये मानना है कि श्री तिवारी जी के तत्वधान में क्लीन पांवटा ग्रीन पांवटा ने जागरूकता की जो अलख जगाई है वो अपने शिखर पर है, जिसमे कि पांवटा साहिब के सभी स्कूलों में बच्चों से सीधा संवाद स्थापित कर उनके अंदर एक विचार की उत्पत्ति को संचरित किया है। जिससे कि घर के बड़े भी स्वच्छता के प्रति अपने उदासीन रवैये पर बच्चों के टोकने पर अपनी नजर निचे करने लगें। हर घर में स्वच्छता के प्रति लोगों में चरचा एवम् गंभीर होना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है। अब समय ऐसा आ गया है कि घर में डस्टबिन की महत्ता बड़ गयी है। इस समय स्वच्छता के प्रति जागरूकता की अद्भुत सी क्रांति जो देख रहा हूँ, हर व्...

Garbage Management

गार्बेज प्रबन्धन (Garbage management):- गार्बेज प्रबन्धन को लेकर हर देश की अपनी अपनी एक प्रस्थिति हो सकती है, इसकी सफलता का आंकड़ा वहां के निवासियों के मनोमस्तिष्क पर निर्ब्जर करता है कि उनका अपने समाज, वातावरण के प्रति कैसा रवैया है, इसके बारे में वे क्या सोचते है व्र्त इस बारे में उनकी आर्थिक स्थिति क्या है। वर्तमान समय में हिंदुस्तान की लगभग किसी भी शहरी निकाय की  गार्बेज प्रबन्धन की स्थिति पर नजर दौड़ाएं, तो खुद-ब-खुद अव्यवस्थित की स्थिति महसूश होगी। हर शहरी निकाय गार्बेज से लड़ती दिखाई देती है, गार्बेज का उचित प्रबन्धन, उसका वैज्ञानिक पदत्ति से निवारण किया जाना हर निकाय के लिए एक समस्या बनता जा रहा है, टी0वी0 में समाचार के माध्यम से व् समय समय पर इस पर होने वाली चर्चा एवम गोष्ठियों से ये बात तो खुलकर आईभी कि इस समस्या से समय रहते सही ठंग से न निपटा गया तो ये अपने समाज के लिये काफी घातककारी सिद्ध होने वाली है। एक ओर जनसंख्या विस्फोट ने शहर में आतंक मचा रखा है, दूसरी ओर जागरूकता के अभाव के कारण इस समस्या को हवा मिल रही है, तीसरी कमी अपने काम के प्रति समर्पित भाव की कमी कह लीजिये,...
“नशा जो ग्रहण लगा रहा पांवटा की सुंदरता को” आदरणीय साथियो, सादर नमस्कार। आगे समाचार है कि बड़ा दुःख होता है वो दृश्य देखकर जिन गलियों से आपको गुजरना हो व् आपको अटपटा लगे, वो दृश्य देखकर आपको आत्मग्लानि का अहसाश होगा, एक इंसान ही एक इंसान की जान लेने के लिए कितना बेसब्र दिख रहा है, नशे का कारोबार अपने शहर में बड़े ही व्यापक ढंग से फल फूल रहा है, कोई दिन ऐसा होता है, जब कोई नशेड़ी या शराबी सडकों पर लिटा न मिले ये क्या तस्वीर है, जब बच्चा पैदा होता है तो खुशिया मनाई जाती है, लड्डू बांटे जाते है। यदि यही बालक उन्हीं माँ बाप के सामने सड़कों पर इस तरह लिटा मिले तो उनकी क्या स्थिति होगी, कल्पना की जा सकती है, ये माँ बाप जीती जागती केवल लाश का ही अनुभति कर रहे होंगें। यही औलाद अवसर देखकर अपने माँ बाप के खून की प्यासी भी दिखाई देती है, क्योंकि उन्हें अपना नशे के लिए पैसा चाहिए किसी भी कीमत पर, रिश्ता उनकी नजर में कोसों दूर हो जाता है। हम शहर को स्वच्छता के मामले में चमकाने में लगे हैं तो दूसरी ओर इस प्रकार के लोग मदमस्त होकर सड़कों पर घूमते मिलते है व् लिटे होते हैं। ये ही कुरीति अन्य कुरू...
“सफाई अभियान के साथ-साथ नशे की भी सफाई जरुरी” पांवटा साहिब में फैलता नशे का कारोबार के दुष्परिणाम:- बड़े हैरानी का विषय है कि कई वर्षों से इस अनैतिक/ अवैध कारोबार पर स्थानीय पुलिस अपनी पकड़ बनाने में असफल क्यों हो रही है व् इस धंधे में संलिप्त व्यवसायी फल फूल रहे है, शहर का युबा जमीदोश होता जा रहा है, पर इस काले धंधे के रूप से जुड़े लोग करोड़ों में खेल रहे हैं। कितनी रैलियां हो गयी, कितने स्टिंग हो चुके, कितनी रेड लग चुकी है, परंतु स्थिति पुनः वहीँ पर लौट आ जाती, जैसी पहले से है। आज पांवटा साहिब में दर्जनों युवा अपना बहुमूल्य जीवन का त्याग कर चुके है, उन माँ बाप के हृदय से पूछिए जिन्होंने उन्हें जन्म दिया है, क्या अरमान होंगें उनके अपने बच्चों को लेकर, अपने जीते जी उनकी लाश को अपने सामने उन्होंने देखा, वे तो जीते जी मर ही गए। इस कुरीति से ही समाज में अन्य कुरीतियों का जन्म होता है, आजकल पांवटा साहिब में कोई दिन ऐसा होता है, जब किसी चोरी की वारदात सुनने को नहीं मिलती, अब नशेड़ियों को इस नशे के सेवन के लिए पैसा तो चाहिये, चाहे उसे किसी की हत्या भी क्यों न करनी पड़े, वो पीछे हटने वा...

Apeal for betterment of sanitation

“अपील” देखने में आया है कि पांवटा साहिब में सफाई के मामले में काफी सुधार आया है, परन्तु काफ़ी सुधार की गुंजाईश है। यदि हम सभी ये प्रण कर लें की स्वच्छता एवम् सफाई के लिए अपने मुलभुत कर्तव्यों का ही निर्वाह कर लें तो वास्तव में क्रन्तिकारी सुधार देखने को मिलेंगें, कुछ दिशनिर्देश आपको प्रेषित हैं, कृपा जनहित में इसे फॉलो करके अपने शहर को स्वच्छ व् सुंदर बनाने में नगर परिषद् को सहयोग करें:- कूड़ा केवल कूड़ा पत्रों में डालना सुनिश्चित करें। अपने घर में 2 प्रकार के डस्टबिन लगाने में सहयोग करें, बायोडिग्रेडेबल वेस्ट (गीला कचरा), नॉन-बायोडिग्रेडेबल (सुखा कचरा) के लिए, क्योंकि गार्बेज प्रबंधन में ये पहला कदम है, यदि ये ठीक से हो गया तो समझिये, 85 प्रतिशत गार्बेज के निपटारे का प्रबंध आपके सहयोग से संभव हो जायेगा। घर में किसी भी रूप में आये पॉलीथिन को इक्कठा करते रहें व् इसे परिषद् कार्यालय में पॉलीथिन कलेक्शन सेंटर में जमा करवाएं। अपने गली मोहल्ले में गार्बेज कलेक्शन डोर टू डोर योजना के तहत आने वाले सफाई कर्मचारी को पूर्ण सहयोग करें व् 100 प्रतिशत गार्बेज उसे देने का प्रयास करें व्...

टोकने से भी बनती है बात

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🎌टोकने से भी बनती है बात:- किसी भी व्यक्ति के द्वारा किया गया कोई भी गलत काम के सम्बन्ध में यदि आप उसे समय रहते टोकते हैं, तो उसे शर्मिंदगी का भी एहसास होता है व् वह सिस्टम से भी जुड़ जाता है, तो हमें चाहिये कि यदि आप किसी भी व्यक्ति को जो की पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में गलत काम कर रहा है, टोकते हैं तो एक बार तो उसे लगता ही है कि वास्तव में वह गलत है व् जो कार्य उसने किया है वह काम उसे नहीं करना चाहिये, इतने से ही बन जायेगी बात। आज दो उदाहरण सुनाता हूँ, एक तो दूकानदार के द्वारा अपने दुकान के आगे गार्बेज का ढेर लगाने को लेकर व् एक देहली न0 की गाड़ी के द्वारा कार के अंदर से ही बोटल, पॉलीथिन व् अन्य waste को बाहर सड़क की ओर फैंकने को लेकर है, दोनों में सफलता प्राप्त हुयी, दोनो केस में मैंने ये अहसास न होने दिया कि मैं कोई कर्मचारी या अधिकारी हूँ, एक आम आदमी की तरह बात की, दोने केस में बात बन गयी। दुकानदार शर्मिंदा तो हुवा ही, सफाई भो उसने खुद की, गाड़ी वाले का हम ने पीछा किया, क्योंकि हम भी गाड़ी से ही सब देख रहे थे, पोलिंग सेंटर का निरीक्षण करने जा रहे थे, तो तरुवाला स्कूल से निच...

Pure water is life

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“शुद्ध जल ही जीवन है व दूषित जल विनाश है” आगे समाचार है की इस विषय पर लिखने का विचार तब आया, जब हमारे प्रदेश की राजधानी व् सोलन से पीलिया के भारी मात्रा में केस की सुचना आने लगी कि दूषित जल के कारण पीलिया महामारी के कारण लोग अपनी बहुमूल्य जान से हाथ धो बैठ रहे हैं, क्योंकि पीलिया जलजनित रोगों की श्रेणी में आता है। हमारे शरीर में 80 प्रतिशत पानी की मात्रा पायी जाती है। यदि कहा जाये कि यही पानी जीवन है, तो इसमें कोई अतिशियोक्ति न होगी, अब यही पानी हमारे जीवन के विनाश का कारण बन जाये तो समझीये कि समय आ गया है, जब इंसान इंसान की जान लेने के लिए काम कर रहा हो, पानी को शुद्ध करने की तकनिकी कागजों तक ही सिमित हों, प्रैक्टिकल कुछ भी न हों, तो एक आम इंसान अपनी जान से ही हाथ धोएगा। प्रकृति का एक नियम है कि कितना भी विषैला पानी क्यों न हो, यदि वो निरंतर बहता रहेगा तो उसका विसैलापन समाप्त हो जाता है। परंतु इंसान की विकृत सोच रूपी पानी खड़ा हो गया है व् दूषित हो गया है, तब इंसान पर उसका असर दिखना लाजमी है। हमारी पृथ्वी ग्रह पर उपयुक्त पानी होने के कारण इसे नीला ग्रह की संज्ञा भी दी गय...

सफाई व्यवस्था में बाधक तत्व।

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                    "सफाई व्यवस्था में बाधक तत्व" माना कि हम सफाई अभियान से जुड़े लोग हैं, हमें सफाई व्यवस्था में काफी सुधार नजर आने लगा है व् हम अपनी पीठ थपथपाने में लग जाएँ, ऐसी बात नहीं होनी चाहिये, जब तक हम आमजन के मनोमस्तिष्क में स्वच्छता के सम्बन्ध में परिवर्तन करने में कामयाब नहीं हो जाते, तब तक ये कहना कि हम सफल हो गए, हमें सफलता हांसिल हो गयी, तो इसमें कोई सचाई न होगी। फिल्ड में देखने को मिलता है की दुकानदारों के द्वारा अपने दिमाग में ये तस्वीर बना राखी है कि हम गंदगी फैलाएंगे, सफाई कर्मी सफाई करेगा। यदि हम गंदगी नहीं फैलायेंगे तो सफाईकर्मी का क्या काम रह जायेगा। इसीलिए तो दुकानदारों के द्वारा अपनी दुकानों में डस्टबिन तक नहीं लगाये गए हैं। सफाई की जाती है, सीधे नालियों में डाल दी जाती है, ये अभ्यास तो किसी अनपढ़ या सिस्टम से खिलवाड़ करने वाला ही है। इससे सफाई व्यवस्था में ही परेशानी का सामना करना पड़ता है। लोगों के द्वारा अपने waste/गार्बेज/कूड़े कचरे को प्रॉपर वे डस्टबिन में न डालना। घर से लेकर तो लाएंगे कूड़ा कर्कट,...

गार्बेज कलेक्शन डोर टू डोर

जैसा कि आपको मालूम है कि नगर परिषद पांवटा द्वारा घर घर से कूड़ा कचरा उठाने एवम उससे निपटान हेतु योजना का शुभारंभ किया जा चूका है, अब प्रत्येक हाउस होल्ड एवम हम सबका दायित्व बन जाता है कि हम अपने घर से निकलने वाले वेस्ट का वर्गीकरण करें, उसकी छंटनी करके कर्मी को दें, यानि सड़ने वाला वेस्ट गिला कचरा (बायो-डिग्रेडेबल वेस्ट) कचरे को अलग बिन में व् न सड़ने वाले वेस्ट (सूखा कचरा नॉन-बायो-डिग्रेडेबल वेस्ट)को अलग बिन में डालकर कर्मी को दें, ताकि सॉलिड वेस्ट कचरे के उचित निष्पादन करने में नगर परिषद को सुविधा हो व् हमारा पर्यावरण/पारिस्थतिकी स्वच्छ व् सुन्दर कायम हो, हम स्वच्छ वातावरण में स्वच्छ ऑक्सीजन लेकर स्वस्थ रह सकें। सफाई पर्वेक्षक, नगर परिषद पांवटा साहिब।