टोकने से भी बनती है बात
किसी भी व्यक्ति के द्वारा किया गया कोई भी गलत काम के सम्बन्ध में यदि आप उसे समय रहते टोकते हैं, तो उसे शर्मिंदगी का भी एहसास होता है व् वह सिस्टम से भी जुड़ जाता है, तो हमें चाहिये कि यदि आप किसी भी व्यक्ति को जो की पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में गलत काम कर रहा है, टोकते हैं तो एक बार तो उसे लगता ही है कि वास्तव में वह गलत है व् जो कार्य उसने किया है वह काम उसे नहीं करना चाहिये, इतने से ही बन जायेगी बात।
आज दो उदाहरण सुनाता हूँ, एक तो दूकानदार के द्वारा अपने दुकान के आगे गार्बेज का ढेर लगाने को लेकर व् एक देहली न0 की गाड़ी के द्वारा कार के अंदर से ही बोटल, पॉलीथिन व् अन्य waste को बाहर सड़क की ओर फैंकने को लेकर है, दोनों में सफलता प्राप्त हुयी, दोनो केस में मैंने ये अहसास न होने दिया कि मैं कोई कर्मचारी या अधिकारी हूँ, एक आम आदमी की तरह बात की, दोने केस में बात बन गयी। दुकानदार शर्मिंदा तो हुवा ही, सफाई भो उसने खुद की, गाड़ी वाले का हम ने पीछा किया, क्योंकि हम भी गाड़ी से ही सब देख रहे थे, पोलिंग सेंटर का निरीक्षण करने जा रहे थे, तो तरुवाला स्कूल से निचे उन्हें हाथ दिखाकर रोक लिया, जब उन्हें उनके कारनामे का अहसाश करवाया तो गाड़ी में बैठे सभी लोग काफी शर्मिंदा हुवे व् भविष्य में ऐसा न करने का वादा किया।
कहने का अभिप्राय है की टोकने से भी बनती है बात, यदि हम प्रण कर लें कि न हम गंदगी फैलाएंगे व् न ही फ़ैलाने देंगे, तो वास्तव में बात बन जायेगी और इस काम के लिये एक टीम वर्क तो चाहिए ही, कितने लोग आज प्रण करने के लिए तैयार हैं कि न गंदगी फैलायेंगे व् न ही फैलवाने देंगें।
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