सफाई व्यवस्था में बाधक तत्व।

                    "सफाई व्यवस्था में बाधक तत्व"
माना कि हम सफाई अभियान से जुड़े लोग हैं, हमें सफाई व्यवस्था में काफी सुधार नजर आने लगा है व् हम अपनी पीठ थपथपाने में लग जाएँ, ऐसी बात नहीं होनी चाहिये, जब तक हम आमजन के मनोमस्तिष्क में स्वच्छता के सम्बन्ध में परिवर्तन करने में कामयाब नहीं हो जाते, तब तक ये कहना कि हम सफल हो गए, हमें सफलता हांसिल हो गयी, तो इसमें कोई सचाई न होगी।
  • फिल्ड में देखने को मिलता है की दुकानदारों के द्वारा अपने दिमाग में ये तस्वीर बना राखी है कि हम गंदगी फैलाएंगे, सफाई कर्मी सफाई करेगा। यदि हम गंदगी नहीं फैलायेंगे तो सफाईकर्मी का क्या काम रह जायेगा। इसीलिए तो दुकानदारों के द्वारा अपनी दुकानों में डस्टबिन तक नहीं लगाये गए हैं। सफाई की जाती है, सीधे नालियों में डाल दी जाती है, ये अभ्यास तो किसी अनपढ़ या सिस्टम से खिलवाड़ करने वाला ही है। इससे सफाई व्यवस्था में ही परेशानी का सामना करना पड़ता है।
  • लोगों के द्वारा अपने waste/गार्बेज/कूड़े कचरे को प्रॉपर वे डस्टबिन में न डालना। घर से लेकर तो लाएंगे कूड़ा कर्कट, परंतु डस्टबिन का उपयोग न करते हुवे खुले में ही फैंक कर चलते बनते हैं। ये अभ्यास भी सफाई वयवस्था में बाधक तत्व है।
  • अपने पालतू पेट्स को खुले में घूमना टॉयलेट करवाना व् गंदगी को खुले में छोड़ जाना, ये भी एक असभ्यता का परिचायक है। मानो हमें पर्यावरण से कुछ लेना नहीं, गंदगी खुले में पड़ी रहे, अपना घर सुंदर रहना चाहिये व् अपने शोक में भी कमी नहीं होनी चाहिये। ये तत्व भी सफाई व्यवस्था में बाधक है।
  • सेग्रीगेशन कचरे के वर्गीकरण का ज्ञान न होना, वास्तव में कचरे का सेग्रीगेशन at source ही हो जाना चाहिए, इससे जीवनाशित कचरे व् अजीवनाशित कचरे को ठिकाने लगाने में सुविधा हो जायेगी व् प्रथम चरण में ही कूड़े में लगभग 45% की कटौती हो जायेगी। कूड़े कचरे के प्रबंधन की अज्ञानता भी एक बाधक है सफाई व्यवस्था में।
  • जो सबसे बड़ा कारण नजर आता है, वो है जागरूकता का आभाव। आमतौर से हर दूसरा व्यक्ति पहले व्यक्ति के द्वारा फैलाई गयी गंदगी से चुप नजर आता है, जिस कारण उसे गंदगी डालने में सुविधा हो जाती है व् गंदगी फ़ैल जाती है, फिर उमींद स्थानीय निकाय कर्मियों से की जाती है कि ये सफाई का काम तो इनका है। ये उदाहरण हमें बसों, ट्रेन्स व् निजी वाहनों में मिल जाते हैं, अक्सर गंदगी फैलाई जाती है, पर कोई किसी को टोकने की जुर्रत भी नहीं करता। इसी जागरूकता के आभाव में हमारे सफाई कर्मियों पर भी किसी की नजर नहीं होती कि वह सफाई किस प्रकार कर रहा है, उसकी सफाई व्यवस्था पर यदि किसी की नजर हो तो उसका आत्मविश्वास भी बढेगा व् सफाई भी आपके अनुरूप होगी।
  • एक जो बड़ा कारण नजर आता है वह है सिस्टम से खिलवाड़, गलियों में व् अपनी दुकानों के आगे नालियों पर अनधिकृत स्ट्रक्चर लगाना। इससे सफाई व्यवस्था में ही बड़ी असुविधा का सामना करना पड़ता है। नालियों की सफाई नहीं हो पाती, चौक हो जाती है, गलियां तंग हो जाती हैं। 
     सफाई पर्यवेक्षक
     नगर परिषद, पांवटा साहिब।

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