Polythene a curse



🚩“पॉलीथिन”
पॉलीथिन के सम्बन्ध में यदि बात करें तो इसके हानियां तो सभी को मालूम हैं, सरकार को भी, परन्तु इसे समाज से हटाने में सबसे मजबूत कड़ी सरकार की दृढ़ इच्छा में ही खोट दीखता है, प्रतिबन्ध केवल हलके पॉलीथिन पर है, घर में तो पॉलीथिन आ ही रहा है वह चाहे किसी भी रूप में क्यों न आ रहा हो, सरकारी राशन डिपो की दालें, तेल, रिफाइंड, बेकरी प्रोडक्ट, दूध्, दही, जूते, होज़री प्रोडक्ट, गारमेंट्स भी तो इसी पॉलीथिन में ही मार्किट में खुले रूप से आ रही है, इस पॉलीथिन पर तो सरकार की कोई निति नहीं है, क्या इस पॉलीथिन का हमारे पर्यावरण को उतना नुक्सान नहीं, जितना प्रतिबंधित पॉलीथिन से है, फिर भी एक काम के लिए दो निति क्यों?
गार्बेज प्रबंधन के द्वारा ही इस बीमारी से सही रूप में लड़ा जा सकता है, घर में ही जो प्लास्टिक किसी भी रूप में आ गया हो उसको अलग से इकठ्ठा करें व् नगर परिषद् कार्यालय में पॉलीथिन कलेक्शन सेंटर में जमा करवाएं या फिर उसे reuse के मकसद से किसी कबाड़ी वाले को दें, उसे प्रयोग किये गए पॉलीथिन का बायोडिग्रेडेबल वेस्ट/जीवनाशित कचरे में में मिलना किसी भी कीमत में नहीं चाहिए, यही एक मात्र लड़ाई है, जो इस पॉलीथिन से निपटान के लिए उचित प्रतीत लगती है। बाकि यदि पॉलीथिन के पूर्ण प्रतिबन्ध के लिए सरकार की निति स्पष्ट व् एक सूत्री हो तो इसके निर्माण (production) के प्लांट ही बंद हो जाने चाहिए, पॉलीथिन किसी भी रूप में बातावरण में आएगा ही नहीं, ये तो वही बात है कि नशा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, सभी को मालूम है, लिखा भी है डिब्बे पर व् बोतल पर, फिर भी मौजूद है आपके लिए खुली मार्किट में, जाइए व् उसे उपयोग कीजिये, ये आपके विवेक पर है कि क्या करना है, क्या नहीं।
प्रदीप दीक्षित,
सफाई निरीक्षक,
नगर परिषद मंडी, हि0प्र0

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