Plastic is like a demon


कोई भी तस्वीर को गौर से देखें तो, तस्वीर की अपनी एक भाषा होती है, वह देखने वाले को अपना एक सन्देश जरूर छोड़ जाती है, सन्देश सकारात्मक हो अथवा नकारात्मक, वह चर्चा का विषय जरूर बन जाता है,  अब ऊपर की पिक को ही लोजिये, ये तस्वीर भी अपने आप मे कुछ कह रही है, सड़क के किनारे नाले से निकाला गया, प्लास्टिक वेस्ट, यानी पानी की खाली बोतलें, जिनका की निस्पदन किया जाना इतना आसान नही, जितना कि हम शॉप से बोतल लेकर अपनी प्यास बुझा लेते हैं व पानी की बोतल को अपनी गाड़ी से बाहर फेंक देते हैं, यही प्रवृति आज समाज मे नकरत्मकत को फैलाने में सहायक है, हमे इसका आभास ही नही रहता कि हम अपने स्वभाव में क्या करते जा रहे है, हम अपने स्वच्छताग्रहियों की ओर ही देख लें, कि वह किन हालात में किस माहौल एवं परिस्थितियों में अपने काम से झुझते नजर आते हैं, उस कूड़ा बीनने वाले कि ओर ही देखकर आंकलन एवं मंथन करे कि उसकी जीवनचर्य कैसी है व डम्पिंग साइट पर वह पूरे दिन, सप्ताह, महीने रहकर प्लास्टिक का सामान इकठ्ठा कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है। ये एक गंभीर विषय है व पर्यावरण से जुड़ा गंभीर मुद्दा है, जिस ओर हमारी सरकार आजादी के इतने वर्ष बीतने के उपरांत गंभीरता से काम करती नजर आती है, अब सरकार भी कोई नियंम बनाये अथवा कोई नीति, कामयाब तो वह तभी होनी है, जब आमजन उस विषय की गंभीरता को ले व उसे अपनी दिनचर्य का हिस्सा बना ले। 
इस पिक एवं मौका पर सफाई करते मन मे आये ये प्रशन थे जो आपसे सांझा किये, अब हमें ही निर्णय लेना है कि प्लास्टिक का कितना इस्तेमाल हमे अपने जीवन मे करना है व इस्तेमाल करने के उपरांत उस वेस्ट प्लास्टिक का क्या करना है, कहाँ डालना है, ताकि उसका रीसायकल हो सके व उस वेस्ट का पुनः इस्तेमाल हो सके, वह समाप्त तो कभी होगा नही, एक जानवर प्रकृति के नियम तोड़ता नही दिखता, जबकि इंसान हर मोड़ पर प्रकृति को छोड़ता नही, इसका चीरहरण करने पर लगा है। प्लास्टिक का निर्माण एवं इसके वेस्ट को नियमित रूप से समाप्त करने के अभाव ने ही प्रकृति का एवं पर्यावरण का काफी नुकसान किया है।

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