Measures for pollution of rivers

आवश्यकता अविष्कार की जननी है, जब तक किसी चीज़ की जरूरत का अहसास नही होता तो स्थिति यथावत चलती रहती है। परन्तु जब किसी वस्तु/सुविधा की जरूरत महसूस होने लगती है तो उसका विकल्प भी सामने होता है।
आज के दौर में हमारे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन चारों ओर से हो रहा है, चाहे, नदियां हो पहाड़ हों अथवा जंगल हों, ये चिंतन का विषय है, आज के दौर में हमने प्लास्टिक की नदी को भी अपनी खुली आँखों से देखा है, ये अवसरवादी इंसान न जाने किस राह पर चल रहा है, जिसे अपने भविष्य की भी चिंता नही। आज जो प्लास्टिक वेस्ट हम खुले में डालते है वह स्वतः नालियों से होता हुवा नदियों एवं समुद्र तक जा पहुँचता है, जिसका सैंकड़ों वर्षों तक कोई इलाज नही सिवाय प्रदूषण के, इससे हमारे जलीय जीवों के लिये भी खतरा मंडरा रहा है।
इसके निवारण/समाधान के लिये हमें ही पग उठाने होंगे, उपरोक्त पिक देखकर ही इसका एक छोटा ही सही परन्तु एक सही मार्ग की तरफ बढ़ाया गया एक कदम तो है ही, इस प्रयोग का आने वाले समय मे लाभ ही होगा, सिवाय किसी नुकसान के। सोचना विचरण मानव/इंसान का काम है कि इसकी शरुआत कब करना है..............

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